वो रात का पहर
वो रात का पहर
आज भी याद है हमकों वो रात का पहर
आँखों में थम गया था वक़्त ना हुई सहर
आसमाँ भी डूबा था चाँदनी के आग़ोश में
नींद के आग़ोश में तब सो गया था शहर
परतव था चाँद भी फ़लक़ पर तेरे हुस्न का
तेरा मुस्कराना मेरे दिल पर ढा रहा था कहर
कश्ती को मिल गया मोहब्बत का साहिल
रूह से टकरा कर गुजरी है तड़प की लहर
मुहर्रिक बन कर तुमने धड़कन को जुम्बिश दी
‘वेद’ से ही रोशन हुआ आशियाँ और यह दहर।