वो एक लड़की
वो एक लड़की
वो गिरती है, लड़ती है, बिखरती भी है,
फिर हर रोज़ सुबह वो संवारती भी है..
मुस्कान उसकी जो आँखों में खिलती है
चेहरे में मासूमियत सी उभरती भी है...
दुनिया के तरीकों से अनजान नहीं है,
पर दुनियादारी से थोड़ा बचती भी है...
झूठ ,फरेब , बदलते रंग नहीं जंचते उसे
वो लोगों से थोड़ा संभलती भी है...
हालातों से गुज़री है, मुश्किलें समझती है
पर नादानियां थोड़ी वो करती भी है...
छोटी छोटी बातों को दिल से लगा लेती है
तुमसे नाराज हो तो जताती भी है..
अगर जो करीब से देखो तो उसे
बड़े बड़े ज़ख्मों को छुपाती भी है..
सच कहूं, तो पहाड़ों में पड़ी बर्फ जैसी है..
ज़रा सी धूप ! और वो पिघलती भी है...
