एक ज़िंदगी चला हूं मैं....
एक ज़िंदगी चला हूं मैं....
तू जी रहा है या मर रहा हैै,
या फिर यूं ही रुक रुक कर चल रहा है..
एक दास्तां जो वक्त के पन्नों पर लिखी हो,
एक नाम जो गुमनामी से फिर उठा हो..
लिख कभी कि क्या हाल तेरा फिर हुआ है,
कि उस ख्वाहिश ने कितनी दफा तन्हा किया है.।
एक सपना जो जगाए रात भर,
और फिर उसे पूरा करने की वो जद्दोजहद..
कि ठुकराया था जिसने तेरी ज़मी देखकर कभी,
तेरी उड़ान को वो आसमां भी छोटा पड़ा है.।
जब मांगे कोई तेरी खुशी का हिसाब कभी,
उस मुकाम पर होने की कीमत कभी,
तो कहना, कि ज्यादा नहीं बस....
एक मुद्दत नींद और खाने को तरसा हूं मैं,
क्या खोया और पाया के हिसाब से ऊपर उठा हूं मैं..
कि एक दिन नहीं, एक रात नहीं, एक अरसा नहीं,
जहां पहुंचा हूं... उसके लिए एक जिंदगी चला हूं मैं...।।
