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Ankita Badoni

Abstract

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Ankita Badoni

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वो गुज़रा हुआ एक पहर

वो गुज़रा हुआ एक पहर

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एक अरसे बाद लौटे हैं इन गलियों में,

कोई आहट तो यहां आज भी है

कुछ अनकहे वादों के वो किस्से

फिज़ाओं में गूंजते तो आज भी हैं।


बंजर पड़ी ये ज़मीं,

कहानी एक वक़्त की यूं दबाए हुए है

खुल ना जाए वो किस्सा बेवफाई का

इस फ़िक्र से सूखी हुई.. आज भी है।


करीब आता एक चेहरा,

हमसे कुछ यूं मुंह फेर गया..

यूं लगा वक़्त बदला तो है मगर

लोगों को हमसे गिला आज भी है।


उसका वो हुनर भी कमाल था,

जो मासूम चेहरे से अपनी साजिशें छुपा गया

और लोग समझते रहे..

धोखे की शक्ल हमारी आज भी है।


हमारी तबाही का वो मंजर भी हसीन था

जहां टूटकर हम बिखरे थे मगर

उसकी ख्वाहिशों के कत्ल का इल्ज़ाम

हमारे सिर आज भी है !


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