एक मोड़
एक मोड़
मैं रूठी रहूं और तुम मुझे मनाने की कोशश ना करो,
कुछ वक़्त जो यूं ही गुज़र जाने तो दो...
तू ज़रूरी है कितना, मैं कितनी ज़रूरी हूं
ज़रा ठहरो... ये सुलझ जाने तो दो,
बढ़ने को तो यूं ही आगे बढ़ जाऊं मैं मगर
कुछ छूटा नहीं इस मोड़ पर,
ये तस्सली तो हो जाने दो...

