वो दौर
वो दौर
वो दौर काफ़ी अजीब होता है…
जब आपका हृदय दुःखी हो…
कुछ हो .. जो आपको भीतर से झकझोर रहा हो…
कुछ हो.. जो शायद समझ की परिधि से परे हो…
कुछ हो.. जो संभवतः हृदय व मस्तिष्क में समन्वय न कर पा रहा हो…
कुछ ऐसा… जिसकी कोई वाज़िब वज़ह न हो…
कुछ ऐसा…जिसे शब्दों के मेल से परिभाषित न किया जा सके…
कुछ ऐसा… जो आपसे…आपके सकून छीन रहा हो…
कुछ ऐसा...जो अपनों को आपसे… व..
आपको अपनेपन से दूर कर रहा हो…
कुछ ऐसा… जो शायद…प्रयत्नों के बाद भी नियंत्रण में ना हो…
वो दौर… सभी के जीवन में..आता ही है…
कुछ नए अपने मिलते हैं…बहुत से अपने खोते हैं…
कुछ एक बार हारते हैं…तो कई बार जीतते हैं…
कभी अपने..तो कभी हालात पर रोते हैं…
कभी दूसरों की नज़र में अपनी पहचान भी खोते हैं…
कभी अपनों के लगाव से हम संभाले जाते हैं…
कभी मुस्कान में…दर्द समेटने का हुनर खुद-ब-खुद सीख जाते हैं..
यह वही दौर होता है…जब शायद हम..
ज़िन्दगी के असल सबक …ज़िन्दगी से सीखते हैं…
यह दौर हमें गिराता है…उठना भी सिखाता है…
कुछ ठोकरें अनगिनत बार देकर…मंज़िल की राह में आगे भी बढ़ाता है…
यह वही दौर होता है… जो हमको…
हमारे व्यक्तित्व के नए पहलुओं से मुखातिब कराता है…
यह दौर…कुछ देकर …हमसे बहुत कुछ ले जाता है…
पर अंततः…काफ़ी कुछ खोकर…स्वयं को पाना भी सिखाता है…