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कुमार अशोक

Romance

4.5  

कुमार अशोक

Romance

वो छलिया पल

वो छलिया पल

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नरकट घिरे, पोखर किनारे,

केश तेरे, काँधे हमारे,

भर ठेहुन दुधिया पाँव,

पानी के दर्पण उतारे,

हाथों में हाथ लिए,

आँखों में आँख दिए,

हर धड़कन, हर साँस थी,

तेरे-मेरे नाम,

याद बहुत आती है,

वो नशीली शाम ।


नजरें कुछ चाहती थीं,

जाने क्या थाहती थीं,

दृढ़ शिखर प्रेम के, या

विश्वास की गहराईयाँ,

नेह मैं तेरा, पढ़ ना पाया,

देह से, उबर ना पाया,

तू स्नात पवित्र प्रीत थी,

मुझे घेरे रहा काम,

याद बहुत आती है,

वो नशीली शाम ।


रगों में कुछ गया फँस,

अंगुरियों को गया कस,

नहीं थी हमको ऐसे,

छलिया पलों की पहचान,

मन साँसों में सरक गया,

घरौंदा दिल दरक गया,

कोई दे गया इसको,

क्यों वासना का नाम ?

याद बहुत आती है,

वो नशीली शाम ।


  



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