बेटियाँ
बेटियाँ


पवित्र गंगोत्री की अविरल हैं धार बेटियाँ,
जहां को कुदरत का सुंदर उपहार बेटियाँ ।
स्वर्ग धरती पर रखती बरकरार बेटियाँ,
हर घर को बनाती हैं परिवार बेटियाँ,
जन्म दिया है दे आसमां के परवाज भी,
कब तक पढ़ाएगी बचाएगी सरकार बेटियाँ,
हर कदम थी जमाने की दकियानूसी बारूद,
बच-बच के निकल आई समझदार बेटियाँ,
चाँद हो, जमीं हो , समंदर या के आसमां,
हर फतह में हुई हैं भागीदार बेटियाँ,
अब तो कह दिया है सबसे बड़ी अदालत ने भी,
फौज में भी बड़ी होंगी असरदार बेटियाँ,
मुमकिन है कि पास होकर भी खिलाफ हो बेटा,
दूर रहकर भी रहती हैं तरफदार बेटियाँ,
बाप के सुख-दु:ख हीं नहीं जर-जागीर में भी,
बराबर की होती हैं हकदार बेटियाँ,
गाँव-शहर बढ़ गई है भेड़ियों की तादाद,
आए दिन हो रही हैं अखबार बेटियाँ,
उम्र अठरह की दहलीज़ क्या पार कर गई,
दुल्हा-बाज़ार में हो गई इश्तेहार बेटियाँ,
सात फेरों ने बदली माँ –बाप की दुनिया,
हुई डोली, शहनाई की पुकार बेटियाँ,
बहन थी ,बेटी थी, हुई पत्नी भी, माँ भी
इक अकेले को कई-कई किरदार बेटियाँ,
भूल जाते हैं अक्सर ये बहुएँ जलाने वाले,
बनेंगी बहुएँ उनकी भी आखिरकार बेटियाँ,
अब आती है चिड़िया दो–चार दिन के लिए,
अपने घर में हुई हैं किराएदार बेटियाँ,
पड़ोस में उठी है सोंधे पकवान की खुशबू,
याद आई हैं फिर से इक बार बेटियाँ I
हाल जानने को रोज दिल रहता है बेचैन,
दूर बसकर हो गई हैं समाचार बेटियाँ,
याद आए, गए पल,छलके आँखों से आँसू,
उगीं वरक पर सूरत-ए-असआर बेटियाँ!