तय है
तय है
यहाँ आना, चमचमाना, चले जाना, तमाम तय है,
हर सहर का हो जाना यहाँ शाम तय है।
कोई कश्ती, लहर कोई, कोई तूफां, नाखुदा कोई,
आलमे फानी में हर शख्स का इक नाम तय है।
उठा तूफान और कतल हो गई कई कश्तियाँ मासूम,
हवा फरार दरख्तों में समंदर पे इल्जाम तय है।
सबके नाम है सागर सबके नाम की शराब है,
किस तरां पिलाए साकी और कितना जाम तय है।
घरौंदे के फ़न्ने तामीर पर करना मत गुरुर कभी,
कोई लम्हा, लहर कोई और अख़ीर अंजाम तय है।
मछलियाँ क्या शंख-सीपी, क्या मोती और रेत क्या,
बिकते हैं सब यहाँ सबका अपना दाम तय है।
बूढ़ा पेड़, ढ़लता सूरज कद्र इनकी भी करो ‘अशोक’,
हर बुलंद सफर का कभी तो विश्राम तय है।