"वो" भी मौसम के जैसे हैं
"वो" भी मौसम के जैसे हैं


सजाकर रात ख्वाबों की
फिर तन्हा दिन निकलता है
उठाकर चांदनी सर पर
लबों से गम फिसलता है
मिटा कर अपनी हस्ती को
दीवाने हाथ मलते हैं
उमर भर याद थी जिनकी
कहां वो साथ चलते हैं।
"वो" भी मौसम के जैसे हैं
जो बस रंगत बदलता है
ना हम मायूस होते हैं
ना उनका दिल पिघलता है।