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Abhinav Kumar

Inspirational

2.6  

Abhinav Kumar

Inspirational

एक सिपाही की डायरी

एक सिपाही की डायरी

1 min
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सरहद पर क़ाबिज़ हूँ,

इस मुल्क का हाफ़िज़ हूँ।


मुश्किलों से,

लड़ने वाला राही हूँ,

मैं इस मुल्क का,

अदना सा इक सिपाही हूँ।


मेहफ़ूज़ हो तुम,

गर तुम्हारा वज़ूद है,

वजह यह के कोई,

सरहद पे भी मौजूद है।


हूँ क्यों मैं यहाँ,

मेरा भी इक घर बार था,

दोस्तों, रिश्तों से,

बेशक मुझे भी प्यार था।


वतन के प्यार में,

छूटे भी अपने दोस्त यार,

कोई तो है वहाँ,

जो कर रहा है इंतेज़ार।


मैं वापस आऊंगा,

इतनी सी है हसरत मेरी,

हो अब चैन - ओ -अमन,

छोटी सी बस चाहत मेरी।


ना गर ये मंज़ूर ये,

दहशत के नुमाइंदों को हो,

क़हर बनकर के मैं,

उनकी जान पर गिर जाऊँगा।


अगर खुद से ही मैं,

घर को ना वापिस जा सका,

तिरंगे में लिपटकर,

लौट वापिस आऊंगा !


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