वो बचपन
वो बचपन
वो बचपन दिखा सड़क पर अकेले
फटे पुराने कपड़े और हाथ में झोले
वो बचपन कंधे पर झोला लटकाए
वो बचपन कंधे वालों को बिखराए
चल पड़ा वो बचपन एक झोला उठाए
वो बचपन अपना दुख किसको बताए
मन ही मन जाने क्या गुनगुना रही थी
वो झोले में उठाकर कुछ डाल रही थी
कभी बैठती सड़क पर कभी वो चलती थी
कभी कुछ सोचती तो कभी वो हंसती थी
रोजाना झोले में डिब्बे बोतल वो चुनती थी
झोला उठाए ठुमक ठुमक कर वो चलती थी
मैंने आखिर पूछ लिया उस बचपन से
क्यों तुम रोज सड़कों पर कूड़ा चुनती हो
वह नन्ही सी इठलाकर हंस कर चल दी
पूछा उससे तो किसी ओर इशारा करती थी
जिस और इशारा हुआ जब देखा मैंने जाकर
टूटी फूटी झोपड़ी और फटी चादर लटकी थी
चारों और बस भूख उदासी का सन्नाटा था
कोई जगा तो कोई भूखा ही सोया हुआ था
ऐसे बच्चे जो कूड़ा और कचरा चुनते हैं
उन कचरों में ही अपने सपने बुलते हैं
आहे क्यों सिसकियां इनकी बन जाती है
दुख का पहाड़ ये इतना जाने क्यों ढोते हैं
इस बचपन को नरक से बाहर लाना है
उस बचपन को पढ़ाना और लिखाना है !