STORYMIRROR

सोनी गुप्ता

Abstract Inspirational Children

4  

सोनी गुप्ता

Abstract Inspirational Children

वो बचपन

वो बचपन

1 min
349

वो बचपन दिखा सड़क पर अकेले

फटे पुराने कपड़े और हाथ में झोले


वो बचपन कंधे पर झोला लटकाए

वो बचपन कंधे वालों को बिखराए


चल पड़ा वो बचपन एक झोला उठाए

वो बचपन अपना दुख किसको बताए


मन ही मन जाने क्या गुनगुना रही थी

वो झोले में उठाकर कुछ डाल रही थी


कभी बैठती सड़क पर कभी वो चलती थी

कभी कुछ सोचती तो कभी वो हंसती थी


रोजाना झोले में डिब्बे बोतल वो चुनती थी

झोला उठाए ठुमक ठुमक कर वो चलती थी


मैंने आखिर पूछ लिया उस बचपन से

क्यों तुम रोज सड़कों पर कूड़ा चुनती हो


वह नन्ही सी इठलाकर हंस कर चल दी

पूछा उससे तो किसी ओर इशारा करती थी


जिस और इशारा हुआ जब देखा मैंने जाकर

टूटी फूटी झोपड़ी और फटी चादर लटकी थी


चारों और बस भूख उदासी का सन्नाटा था

कोई जगा तो कोई भूखा ही सोया हुआ था


ऐसे बच्चे जो कूड़ा और कचरा चुनते हैं

 उन कचरों में ही अपने सपने बुलते हैं


 आहे क्यों सिसकियां इनकी बन जाती है

दुख का पहाड़ ये इतना जाने क्यों ढोते हैं


इस बचपन को नरक से बाहर लाना है

उस बचपन को पढ़ाना और लिखाना है ! 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract