वो औरत
वो औरत
वो औरत
वो औरत, वो शोहरत।
वो नारी, वो बेचारी।
वो अबला, वो सबला।
वो लक्ष्मी, वो कुलक्षिणी।
वो कमला कान्ति, वो कमली अशान्ति।
वो उमा और रमा, वो कमसिन और जवां।
वो धरती की आन, वो कोठे की शान।
वो नूर, वो हुस्न के बाज़ार का सरूर।
वो भारती, वो आरती।
वो साधना, वो आराधना।
वो भक्ति, वो शक्ति।
वो मुक्ति, वो सुक्ति।
वो क्रान्ति, वो भ्रान्ति।
वो तप की तपन
वो ज्वाला की अगन।
वो तूफान का वेग
वो नदी की धारा का तेज।
वो हीर,
लिखती किसी रांझा की तकदीर।
वो शीरी की याद,
जिसके लिए गीत गाता कोई फ़रियाद।
वो सस्सी,
पुन्नु के होठों की हँसी।
वो उज्जवल मन की स्वामिनी,
वो नल की दमयन्ति दामिनी।
वो सावित्री सत्यवान की,
वो प्रतिमा आन और शान की।
वो मन्दिर की मूरत,
प्यार और ममता की सूरत।
पूर्णतः समर्पित
तन, मन, धन से अर्पित।
बस वो सिर्फ औरत,
वो शोहरत।