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Archana kochar Sugandha

Children

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Archana kochar Sugandha

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कंगाल

कंगाल

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जिंदगी की यात्रा में, गुच्ची में बंद 

चंद कीमती सांसों का, सामान हुआ ।


उपेक्षित हुआ गुच्ची का, बहुमूल्य सामान 

जिंदगी के नाम, लौकिक साजो-सामान हुआ।


धक-धक चलती, सांसों का आगाज 

विचारक चिंतन-मनन से, दरकिनार हुआ।


आती सांस जिंदगी, जाती लाश के 

अहसास का आभास, केवल शमशान हुआ।


गिनती की सांसों में, खाली हुई गुच्ची

जिंदगी श्मशान का, सामान हुआ।


मंद-मंद मुस्कुराई, सांसों के सामान की गुच्ची

उसकी सतत्ता के बिना, धनवान मुसाफिर कंगाल हुआ।


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