खूब लड़ी मर्दानी
खूब लड़ी मर्दानी
खूब लड़ी मर्दानी
खूब लड़ी मर्दानी
वो झाँसी की रानी थी
दुर्गा, काली, माँ भवानी थी
मर्दाना शक्ति में जनानी थी ।
सता-सिंहासन के प्रति न कोई आसक्ति थी
सत्यनिष्ठ सच्ची देशभक्ति थी
देशभक्ति की अलख जलाने आई थी
माँ भारती के सोए सिंहो को जगाने थी ।
देश अनुराग की कायल थी
छोड़ी उसने कंगन, बिच्छू, पायल थी
अंग्रेजों को छठी का दूध याद करवाती पवन वेग के घोड़े पर वह घायल थी ।
चंडी-रणचंडी वह बेहद वीर थी
मरते दम तक छोड़ी नहीं उसने शमशीर थी
पीठ पीछे सुत को बाँधे
अंग्रजी हकूमत के पतन की तस्वीर थी।
बड़ी कठिन डगर मुश्किल में थी जंग
जब महारानी ने दिखाए अपने रंग
अंग्रेजी हकूमत सकते में, रह गई दंग
अधिराज बनने के सपने, उनके हुए भंग ।
सिंहनी सी निर्भीक ललकार थी
हाथों में चमकती तलवार थी
मायने नहीं रखती जीत-हार थी
वह तो झाँसी की प्रतिहार थी ।
रानी जब तुम चिरनिद्रा में सोई थी
पल भर के लिए अंग्रेजी आँख भी रोई थी
अंग्रेजी हुकूमत ने झुककर किया तुम्हें प्रणाम था
तुम्हारे चरणों में नतमस्तक पूरा हिंदुस्तानी था ।
इतिहास के स्वर्ण अक्षरों में लिखी कहानी थी
खूब लड़ी वह जनानी मर्दानी थी
आजादी की चिंगारी जला गई थी
गहरी निद्रा में सोए सियासतदारों को जगा गई थी ।
जब हिंदुस्तान, अमर शहीदों की कुर्बानी लिखेगा
पहला नाम झाँसी की रानी लिखेगा हिंदुस्तान का कण-कण तुम्हारा उपकार लिखेगा
तुम्हारे चरणों में नतमस्तक आभार लिखेंगे ।