वो अंतहीन इंतजार
वो अंतहीन इंतजार
वो प्यार भरा इंतजार
जब मां किया करती थी
अक्सर मेरें कॉल का
इंतजार किया करती थी
मुझसें बातें ना होने पर
व्याकुल हो जाया करती थी
मेरे दुख से दुखी और खुशी में
खुश हो जाया करती थी
जब कभी बात ना हो पाती
वो उदास सी रहती थी
मेरे एक फोन कॉल का
बेसब्री से इंतजार करती थी
उनके दिखाए रास्ते पर
सदैव मैं चलती रही
धीरे-धीरे अपने कार्य कलापों
व परिवार में मैं रमती गई
बच्चों की परवरिश में
व्यस्त मैं होती गई
लापरवाह नहीं थी मैं
पर मां से थोड़ी दूरी बढ़ती गई
ठीक वैसे ही जैसें मां ने
बरसों पहले गुजारी थी
मैं व्यस्त थी पर मां की
प्रतीक्षा सदैव जारी थी
बच्चें एक दिन बड़े हुए
अपने पांवों पर खड़े हुए
बाहर को निकल गए
अपनें कामों में रम गए
जब मैं अकेली पड़ गई
मां की याद दिल से लग गई
ह्रदय व्याकुल सा तड़प उठा
मन का कोना कोना रो उठा
समय कैसे बीत जाता
पता चलता ही नहीं
आज मेरे पास वक्त ही वक्त है
पर मेरे पास मां नहीं
सब कुछ साथ में है मेरे
पर मेरे साथ मां नहीं
बस मां को याद करती हूं
और कोई चारा नहीं
आज यह महसूस है होता
अकेलापन कैसा है होता
दूर वह मुझसे चली गई
मैं मां बिन अकेली पड़ गई
याद हमेशा मां की आती है
दिल को बेहद तड़पाती है
दिल रहता है बेकरार
मां तेरा वो अंतहीन इंतजार।