वो आंगन कहाँ गया।
वो आंगन कहाँ गया।


खुशियों का आंगन कहां है तू ।
खुशियों का आंगन कहां है तू।
जो था मेरे बचपन में समा।
जिसमें है बहुत यादें मेरे।
लहराती हुई फसल चारों ओर ।
फूलों की खुशबू हर तरफ महकती।
उन खेतों में तैरते हुए तितलियां।
उनके पीछे भागते हुए मेरे दोस्त।
आंगन में बैठे हुए हमारे बुजुर्ग।
उनके साथ बैठे हुए हम सब।
और वह अनगिनत कहानियां
जो आज भी हमारे जीवन के एक भाग बन चुके हैं।
गलियों में गूंजते हुआ है हमारे किलकारियाँ।
साइकिल चलाते हुए मिठाईयां लाने वाले नानजी।
बच्चों को लाड प्यार से खिलाते हुए वह मां।
चंदा मामा भी वह दिनों में क्या खूब लगते थे।
हमने तो कितनी बार पुकार लगाई है पर उन्होंने कभी नहीं सुनी।
उस बारिश की मौसम में तैरती हुई हमारी नाव।
उने बना कर देने वाले हमारे मामा।
गाड़ी पर सैर कराने वाली वह मौसी।
चॉकलेट लाकर देने वाली वह मामी।
और हमारे हाथों में हमेशा रहने वाले गुड्डा गुड़िया।
और ढेर सारी मस्ती मजाक।
खुशियों का आंगन कहां है तू।
खुशियों का आंगन कहां है तू।
जहां गूंजती चारों ओर हमारी हंसी की किलकारियां।
कभी-कभी वह गालियां जो हमें सुनने पड़ते थे हमारे शैतानियां ही ऐसे थे।
खुशियों का आंगन कहां है तु।
खुशियों का आंगन कहां है तु।
फोड़े जाते थे लाखों पटाखे।
और वह रंगोली जो आंखों को भा जाती थी।
और इन त्योहारों में वह मजा कहां।
जो तब आती थी जब त्यौहार के लिए लाए हुए कपड़े उससे पहले ही 10 20 बार पहन चुके होते थे।
और वह मिठाइयों की महक जो घर के बाहर की आंगन तक आती थी।
कितने शैतानियां किया करते थे।
और आइसक्रीम बेचने वाले और उनसे हमारी वार्तालाप।
गोलगप्पे वाला तो जैसे कि परिवार वाला ही लगता था।
खुशियों का आंगन कहां है तू।
खुशियों का आंगन कहां है तु।