विस्तार
विस्तार
संभावनाएँ कह रही विस्तार मन का हो अभी
प्रस्थान तन जब भी करे उत्थान मन का हो अभी,
प्रति पल प्रलय है गूंजता, है काल सम्मुख जूझता
मृत्यु से भय न हो कभी, जीवन से परिणय हो अभी।
संभावनाएँ कह रही विस्तार मन का हो अभी
जीवन धरा पर है कठिन, तांडव है प्रकटित हो रहा।
विध्वंश का है यह समय, सृस्टि का उद्गम हो अभी,
संभावनाएँ कह रही विस्तार मन का हो अभी।
मन का तामस हर क्षण बड़े, दीपक की लौ है घट रही,
बढ़ती निशा के इस पहर में, सूरज उजागर हो अभी।
संभावनाएँ कह रही विस्तार मन का हो अभी
प्रस्थान तन जब भी करे उत्थान मन का हो अभी।
