वक्त
वक्त
खिड़की के पास
बैठकर
वर्षा की बूंदों के साथ
गा लूँ
तुम्हारी खिली फूलवाली चेहरा
जी भरकर देख लूँ
कौन जाने
वक्त मिलेगा की नहीं
वक्त तो डरा रहा है
सुबह-शाम
हर समय
मन की हवेली में
जी भरकर सेवा का मौका दो
कौन जाने
वक्त मिलेगा की नहीं
जाने वाले
चले गये
वक्त की
मोटी धूल से
दब गये
वक्त जो मिला है थोड़ा
तुम्हारे साथ
दो कदम चलने की
आनंद के साथ
बिता लेने दो
वक्त ही जाने
यह सुनहरा वक्त भी
जाने कब ख़त्म हो जाए
बाद में
वक्त मिलेगा की नहीं
कौन जाने ?
