"दीवार पर टँगी तस्वीर"
"दीवार पर टँगी तस्वीर"
घर के ड्राइंग रूम के दीवार पर
श्याम श्वेत रंग की टँगी एक पुरानी सी तस्वीर
जब भी देखता हूँ उस तस्वीर को
जिसमें दादा दादी माँ बापू संग
ढेरों यादें सामने आने लगती हैं
छोटा भाई व प्यारी बहन
तस्वीर लगता जैसे बोलती है
चलचित्र की तरह घूम जाता है
वह तस्वीर जो आज भी निशानी है
जिसमें बचपन की ढेरों कहानी है
दादा संग बाज़ार को जाना
ज़िद कर खिलौनों को लाना
घर आते ही शुरु होती लड़ाई
खिलौना कभी मैं लेता कभी लेता भाई
बहना तो कभी न पाती
फिर शुरु होती उसकी रुलाई
चौके में नीचे साथ बैठ कर खाना
पढ़ने के लिए कितना होता बहाना
गाँव का वह प्राइमरी स्कूल
पढ़ने के लिए हाथ पे पढ़ता था रूल
दोस्तों संग पढ़ना लिखना
खेल खेलना और था झगड़ना
रात में दादी के लोरी कहानी को सुनना
उस एक पुरानी तस्वीर में
एक युग है समाहित
बापू का हमको नसीहतों को देना
भोर होते ही पढ़ने को उठाना
सारे पाठ को याद करके सुनाना
गाँव का वह घर आता है याद
साईकल खरीदने को मम्मी से फ़रियाद
याद आते चाचा चाची व गाँव के लोग
छोटे से घर में सब रहते थे प्रसन्न
न ही शिकायत न रहता कोई खिन्न
मिल जुल कर सब रहते थे साथ
घर के कामों में सब बंटाते थे हाथ
काश ! वह लौट आए बचपन
रिश्तों में रहता था कितना अपनापन।