क्रोध
क्रोध
क्रोध कहो, या कह लो गुस्सा
या फिर इसे कहो तुम रोष
नहीं किसी भी और का,
इसमें है बस अपना दोष
कहो कभी हम गुस्से से
कुछ भी हासिल कर पाए हैं?
जब भी क्रोध ने हमको घेरा
तब - तब हम पछताए हैं!!!
क्यों कर हम खुद पर ही बोलो
नहीं नियंत्रण कर पाते?
क्यों दूजे के हाथों में हम
चाबी गुस्स्स्से की दे आते!
जीवन में कटुता य़ह लाता
सुंदरता चेहरे की खाता
य़ह मन को अपने बहकाता
अंत में केवल है पछताता
तो क्रोध को छोड़ो य़ह दुश्मन है
अपनी काया तो चंदन है
क्रोध का सांप न लिपटे जिसको
ऐसी काया को वन्दन है
ऐसे ही मन को वंदन है.