वक़्त...
वक़्त...
पल पल बदलता "वक़्त" नई उम्मीदें
नई चुनौतियों से रूबरू कराता है
तो पीछे छूट जाती हैं
हमारी छोटी बड़ी गलतियां
और साथ रह जाती हैं
जिंदगी की कितनी खट्टी मीठी यादें
और ना जाने कितने तजुर्बे
यूं लगता है शायद
जिंदगी के हर मोड़ पे ये पहलू हमें
अलग अलग रंगों में ढलना सिखाती हैं...
वक़्त हर ज़ख्म भर जाता है
रह जाती हैं निशानियां लम्हों में सिमटकर
पर वक़्त ठहरता नहीं
हर घड़ी कुछ कह जाता है
जिंदगी की धूप-छांव में उलझकर
खुद को खोना नहीं
पथरीली राहें हो तो क्या
घना अंधियारा हो तो क्या
अपनी कोशिशों पे एतबार करना ही है
बादलों को छंटना ही है
चांदनी को फिजाओं में घुलना ही है
यूं लगता है शायद
वक़्त के पहिए हमें
आगे बढ़ने का हौंसला देंती हैं
जिंदगी की कश्ती तो चलती जाती है
"वक़्त" से जूझकर लड़कर ही मंजिल मिलती है...