STORYMIRROR

संजय असवाल "नूतन"

Abstract

3  

संजय असवाल "नूतन"

Abstract

वक्त तूझसे शिकायत है।

वक्त तूझसे शिकायत है।

1 min
279

वक्त 

भी कितना अजीब सा होता है, 

कैसा बहका बहका सा रहता है, 

कभी गोद में हमारी

खुशियों की फुलझड़ियाँ

थमा देता है, 

और हम 

यही सोच कर खुश होते हैं 

कि ये लम्हा थम जाए,

रुक जाए

कुछ पल के लिए,

खुशियों को हम 

खुद में समा ले 

कहीं जाने ना दे,

पर अचानक

तन्हा खुद को

ऐसे मोड़ पर खड़े पाते हैं 

जहां बस बेसब्री हो, 

बेख्याली हो

सदाएं बिखरी पड़ी हो यहां वहां, 

और वक्त हम पर 

खिलखिला के हँस रहा हो, 

उलाहना दे रहा हो 

हमें

हमारी बेचारगी के लिए।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract