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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Classics

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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Classics

वक्त की बात

वक्त की बात

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वक्त की बात

सब वक्त की बात है

कभी हम थे मन के बादशाह 

आज हम हैं वक्त के गुलाम  

अपनी बादशाहत की कोई रियासत ना थी

मन की बादशाहत व गुलामी दोस्ती की थी।।


वह सुनहरे बचपन का दौर था 

सपनों का क्षितिज कुछ और था


चाहे-अनचाहे ,कभी - कभी

यादों के झोंके खोल देते 

बचपन के बंद सुनहरे पन्ने


वहाँ जो था सब था अपना 

आज बना बैठा एक सपना


टेढ़ी मेढ़ी पगडंडिया

सीधे साधे लोग 

खपरपोस स्कूल की टूट-टाट, टप-टप

काना मास्टर की छड़ी का सप-सपा-सप

कभी बरसाती मेढ़क के टर्र-टर्र से युगलबंदी

कभी गन्ना, कभी मटर चुराने की गोलबंदी


रंभाती गैया, उछलता कूदता बछेडु

थन से निकली ताजी दूध का स्वाद

उसके गाज से बने मूँछ का विवाद


एक ही सोते एक ही घाट पर पानी पीते

गाँव के लोग , गाँव के जानवर

बछेडु को प्यार से चाटती गाय ,

चाट लेती मुझे भी

उसके जीभ का खुरदरापन 

महसूसता आज भी बदन पर


लेकिन गैया का शाम को रंभाना 

बछेडु का उछलकूद करना

अब गाँव में भी अतीत बन गया है

दूध मशीनी, इंसान मशीन बन गया है।


नहीं बचा अब बचपन का गाँव

नहीं बचा अब पीपल का छाँव

आनेवाला बचपन कहाँ लटकाएगा

अपने खुरदरे यादों की गुदगुदाती पोटली !!


बचपन में जल्दी बड़ा होने की चाह

जवानी में बचपन की याद

बुढ़ापे में दोनों से बिछड़ने का भाव

एकमेव उपाय आज में जीने का स्वभाव।।


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