वक़्त का साया
वक़्त का साया
न तुम बेवफ़ा थे न हम बेवफ़ा थे ,
वो वक़्त बेवफ़ा था जो हमें जुदा कर गया
न तुम बेवफ़ा थे न हम बेवफ़ा थे ,
वो वक़्त का साया था जो तुम्हें चुरा ले गया।
पत्थरों के अनजान शहर में दो कदम साथ चले थे हम,
काँटों के बीच अनजानी सी राह पर साथ चले थे हम,
न जाने कब चुपचाप वक़्त का साया भी वहाँ से गुज़र गया
मंज़िल पर पहुँचने से पहले ही मुझे तुमसे जुदा कर गया।
याद आती हैं अनजान शहर की जानी-पहचानी सी बातें,
पत्थरों के शहर में बीती काली-पथरीली सी रातें,
वक़्त के कहर ढाने से पहले की मीठी सी मुलाकातें,
अब रह गयी हैं बस उन यादों की ठंडी-ठंडी सी आहें।
बुरा वक़्त आया था तो अच्छा वक़्त भी कभी आएगा
जो कभी खुद ही तुम्हें मेरे दरवाज़े तक पहुँचा जायेगा
इस उम्मीद में इंतज़ार का वक़्त भी गुज़र जायेगा
अगर न मिले, तो एक अरमान लिए दम निकल जायेगा।
आख़िरी वक़्त पर दम निकलने तक बस तुम्हें ही याद किये जायेंगे
अपनी पलकों को तुम्हारे हाथों से बंद करने की चाह लिए मर जायेंगे
तब तो शायद इस बेरहम वक़्त को हम पर थोड़ा सा रहम आ जाए
तुम से मिलने की हमारी आख़िरी तमन्ना को तुम तक पहुँचा जाए।