विश्वास
विश्वास
पीली पीली सरसों के
लहलहाते हुए खेत।
मिट्टी की सौंधी खुशबू
और उड़ती हुई रेत।
मन में बचपन की
महक जगाती है।
हर याद को
ताजा कर जाती है।
एक बार फिर बचपन में
लौट जाने को मन चाहता है।
सोचती हूँ,
आखिर बड़ा होकर इंसान
क्या हासिल कर पाता है।
केसरिया रंग के आकाश से
वर्षा की दो बूंद जब बरसती है,
तब किसी एक रंग के पुष्प की नहीं
अपितु धरा पर सब पुुुष्पों की प्यास बुझती है,
फिर क्यों इंसान
रंगों के माया जाल में फंसता जाता है।
सोचती हूँ,
आखिर बड़ा होकर इंसान
क्या हासिल कर पाता है।
तुझे बड़ा गुमान है ना जिन्दगी खुद पर
जो तू हमको इतना सताती है।
पर कमबख्त कम तो हम भी नहीं,
ओढ़ कर चुनर विश्वास की
खुद पर तेरा हर जख्म
खुशी-खुशी सहन कर जाते हैं।