विश्वास
विश्वास
काश ! ना होता साथ
कारवां विश्वास का
तो भूल जाती मैं
पिछला हर लम्हा
हर ख्वाहिशें खत्म कर देती
हर हसरत जिसके गाँव में
बसते थे ख्वाबों के नीड़
हर मुस्कराहट जो मांगती थी
अपने कर्ज का हिसाब
भूल जाती मैं
एक पल की हँसी
दुसरे पल का दर्द
काश ! उम्मीद की दीर्घा
मिट जाती तो गन्तव्य पा लेती
किसी की आहट ना होती तो
विश्वास भी खत्म हो जाती
उसी आहट ने याद दिलाया
कि कुछ बांकी रह गया है
अब भी मेरी तन्हा जिन्दगी में
शायद यही उम्मीद है
या शायद यही है
मेरा विश्वास।