विपदा का सामना
विपदा का सामना
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ऐसा लगता है मानो अपनो का साथ छूट रहा है,
वक़्त धीरेेे धीरे हाथ से निकल रहा है,
हर पल मन मे डर है,
आज हर इंसान खौफ़ज़दा है,
हे प्रकृति ! यह तेरा कोप है,
या हम मनुष्यो को दी गई तेरी कोई सज़ा है,
पंंछी आज आज़ाद है,
इंसान पिंजरे में कैद है
ये कैसा डर है,
ये कैसा ख़ामोश शहर है,
हर गली सूनी है,
हर शहर मेंं सन्नाटा है,
यह कैसी विपदा प्रभु,
इंसानों को आज कैसे बांटा है,
साथ मिलकर ही इसका सामना कर सकते हैं,
सकारात्मक रहकर ही इस विपदा से लड़ सकते हैं ।