विनय ।
विनय ।
लेकर श्रद्धा के पुष्प हे नाथ खड़ा हूं तेरे द्वारे,
स्वीकार करो मेरी प्रार्थना हे !दीनों के रखवारे।
ऐसा कोई शब्द नहीं जिससे महिमा तेरी मैं गाऊं,
जो कुछ भी हूं हाड़ - मांस का पुतला जिसको मैं चढ़ाऊं।
कोई त्याग नहीं ,अनुराग नहीं है कैसे तुझे रिझाऊं,
प्रेम का भूखा ,दरस को तरसूँ, कैसे तुझे मनाऊं।
अब तो अपना लो प्रभु इस ,"नीरज "पापी को,
प्रेम की भिक्षा मांग रहा हूं, जाऊं तो कहां पर जाऊं।