विजयी भव
विजयी भव
सागर अंजुली में भर
नभ को भी छोटा कर
छोड़ कर सब उधेड़ बुन
स्वप्न नित्य नवीन बुन
एक कर दे धरती गगन
बड़ा बन तू बड़ा बन
होता कई जन्मों का फल
सौभाग्य, सुअवसर, श्रम
करते सभी प्रतीक्षा प्रयत्न
योग्य योगी ही होते धन्य
एक कर दे धरती गगन
बड़ा बन तू बड़ा बन।
