स्लेट पर स्लेटी चलाने सा
स्लेट पर स्लेटी चलाने सा
बड़ा इतराता हुआ
आया एक झोंका हवा का
यूँ शुरुआत की उसने
कि कर गया हमे हैरान
आया था वो मैत्री की आस मे
और खोलने बंद ताले
झूठा नकाब और मीठी वाणी लिए
चढने लगा सीढिया
अचानक से जब पकङी चाल
और पोछा सौन्दर्य पदार्थ
असली चेहरा था दागी सा
और मन में था मैल
छूमंतर करने के लिए जीवन से
मारी बुलेट फुंक
झोका गया समुद्र के पार
ए इंसान जरा ध्यान राखियों
आज की है ये सच्चाई
दोस्ती का हाथ सोच के बढ़ाना
व्यक्ति की है ये घिसी-पिटी चाल
सपने दिखा माला- माल के
करेगी या करेगा तुम्हें कंगाल
जनाब यू तो कलम उठती है हर एक दिन
लिखने किताबों और कापियों में
सच्चाई लिखी जाए जिस दिन
वो होता है सातों में एक दिन।
