विजयादशमी
विजयादशमी
एक विलक्षण रावण था
तो एक पुरुषोत्तम राम।
अहंकार को पूजता रावण
तो सरलता का वास राम।
अतुलित तप, असीमितशक्ति
दोनों की शिव में परम भक्ति।
एक हुआ पूर्णतः पथ-भ्रष्ट
एक के शिरोधार्य वन के कष्ट।
कर बैठा भूल वो रावण
होकर मद में चूर,
परख बैठा राम की सहिष्णुता
होकर विवेक से दूर।
आखिर हुआ संग्राम- एक ओर
लंका के योद्धाओ की भीड़
एक ओर वानरों का नीड़
प्रखर हुई बाणों की वृष्टि
था रक्त जहाँ तक पड़ी दृष्टि।
रावण ने बल प्रदर्शित किया
राम को कुछ विचलित किया।
रणभूमि में मचा हाहाकार
गूंजा चहुँओर चीत्कार।
नाभि में आखिर लगा बाण
हर लिए दशानन के प्राण।
नष्ट हुआ फिर असुर राज
विष्णु अवतार ने रखी
पुनः धर्म की लाज।
वनवासी राम अयोध्या आये
माता सीते को साथ लाये।
था प्रसन्न जीव प्रत्येक
हुआ राम का राज्याभिषेक।
