जीवनः एक यात्रा
जीवनः एक यात्रा
शाम से ही आज आँखो में नमी-सी है
मैं वस्तुस्थिति को और आस पास चल रहे
घटनाक्रम को कई बार शायद
बहुत अलग नज़रिये से देखता हूँ ।
मैं कोई सिरमौर नहीं हूँ,
बस भीड़ का हिस्सा ही तो हूँ।
होने को तो सब साथ हैं,
पर अंततः अकेला ही तो हूँ।
यूँ एकांत में, शून्यता में बैठे हुए
खुले आकाश के नीचे
एकटक क्या निहारता हूँ?
जीवन का रहस्य तो खोजने वाले खोज चुके,
कुछ अभी खोज रहे हैं और
सबका समझने-समझाने का
अपना तरीक़ा है।
मैं भी तो जीवन को सीख ही रहा हूँ।
