नारी के अनेक अवतार
नारी के अनेक अवतार
उसको जीवन ईश्वर ने दिया था
परंतु हल्की-सी शिकन परिवार के
वृद्धों के चेहरे पर न जाने क्यूँ आयी थी।
समय का चक्र गतिमान हुआ।
वो बन चुकी थी - दादी की सहायक
पापा की लाड़ली, मम्मी की सहेली
और भाई की अज़ीज़ दोस्त।
हर सदस्य के बेहद करीब होते
हुए भी उसको एक दिन
इन सबसे दूर जाना ही था।
समाज की रीत कही जाये
या समय की पुकार - उसकी शादी हो गयी।
वर्षों से सींचे हुए पौधे को परिवार ने
आंसुओं के साथ विदा किया।
आज से वो एक नए घर में थी।
नये माता-पिता, नये परिवारजन।
सास ने अपनी वर्षों की संभाली
हुई धरोहर - बेटा और
घर - दोनों आज बहु को सौंप दी थी।
