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Chitrarath Bhargava

Abstract

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Chitrarath Bhargava

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जीवन यात्रा

जीवन यात्रा

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मनुष्य हूँ, जीवन की यात्रा में जब

अभिमान हावी हो जाएगा,

तब अपनों के निकट रहूँगा क्या ?


नित परिश्रम कर जब सामर्थ्य जुटा लूँगा,

तब दीन को संबल दे सकूँगा क्या ?


भ्रांतियाँ जब पोषित होंगी,

अहं ही को बस महत्व देंगी,

जीवन के उस मृत-शिखर पर

वरिष्ठ-कनिष्ठ का अंतर रख सकूँगा क्या ?


परिवर्तन का चक्र जब घूमेगा,

समय पवन के वेग सा गुजरेगा

उस धूलभरी आँधी में खुद स्वच्छ बचूँगा क्या ?


मेघगर्जन और अतिवृष्टि में भी,

शुष्क हो चुके उस कंठ को

सोम-तृप्त कर सकूँगा क्या ?


उत्कृष्टता की इस होड़ में जब

मृत्यु हावी हो चुकी होगी,

शैय्या पर शव होगा,

तब भी उत्कृष्ट रहूँगा क्या ?


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