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Chitrarath Bhargava

Abstract

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Chitrarath Bhargava

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लक्ष्य

लक्ष्य

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महत्वाकांक्षाओं के प्रपात जब दिल में भर जाते हैं 

मनुज को झिंझोड़ कर कर्म का मार्ग दिखाते हैं। 


एक अलख जाग उठती हृदय में 

जिसको संजोता वह हर समय में। 


बरबस अपने लक्ष्य की ओर  

मनुष्य बढ़ता जाता है,

क्षण एक नहीं दम लेता फिर

बस आगे बढ़ता जाता है। 


अंततः मंज़िल को गले लगाता है,

विजय पताका लहराता है। 

परन्तु विधि को बैठना कहाँ पसंद है

एक नया लक्ष्य अपने समक्ष 

मनुष्य फिरसे पाता है। 



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