खामोशी की गूँज
खामोशी की गूँज
आईने के सामने खड़ा होकर
खुद की खामोशी को टटोलने
की कोशिश करता हूँ।
रुककर आंखों को देखता हूं
तो मानो
अब वो मुझसे कुछ भी बोलना
नहीं चाहतीं।
इस खामोशी की गूँज
को साथ लेकर बालकनी
से उन्मुक्त आकाश की ओर
नज़रें दौड़ाता हूँ।
समझ यही पाता हूँ
कि सब उसी प्रकार
अंधी दौड़ में लिप्त हैं।
मैं भी इसी दौड़ का हिस्सा हूँ,
मन नहीं मानेगा, तो भी दौड़
में सबको शामिल होना पड़ेगा।
हार और जीत का पता भी नहीं चलेगा -
बस परिभाषाएं बता दी जाएंगी,
जो स्वयं वस्तुस्थिति पर निर्भर रहेंगी।
