विजय
विजय
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वीर बलवान होत,
वचन मन कर्म से,
उनके लिए न कोई,
कठिन ये राह थी।
रणभूमि गया जब,
वीर अभिमन्यु तब,
दिल में उसके बस,
विजय की चाह थी।
शत्रु पर टूट पड़ा,
बन यमराज जब,
मुख से शत्रु के तब,
निकली ये आह थी।
संकटों में घिर कर,
शत्रु से लड़ा था जब,
विजय श्री ने तब भी,
पकड़ी ये बाह है।