खुश होकर करें सदा इनका निर्वाह
खुश होकर करें सदा इनका निर्वाह
जीवन है गतिशील अनवरत,
इसका थमता कभी नहीं प्रवाह।
संघर्ष भरा जीवन हम सबका ही,
सदा ही सुख होता है सबकी चाह।
मुख न मोड़ें कभी निज दायित्वों से,
खुश होकर करें सदा इनका निर्वाह।
होती है हम सबकी ही यह तमन्ना,
मिलें हमको निज सारे अधिकार।
सुख-दुख जीवन के अभिन्न अंग हैं,
हैं दो पक्ष एक श्वेत और दूजा स्याह।
मुख न मोड़ें कभी निज दायित्वों से,
खुश होकर करें सदा इनका निर्वाह।
श्रम स्वेद बिंदु ही बन जाते हैं मोती,
श्रम का होता है सदा ही मधुर फल।
मंजिल मिलती केवल चलने से ही,
आलसी की पूरी नहीं हो पाती चाह।
मुख न मोड़ें कभी निज दायित्वों से,
खुश होकर करें सदा इनका निर्वाह।
ग़म न कोई बस खुशियां ही खुशियां,
जो हम एक -दूजे की करें परवाह।
खुशियां निज हम सब में ही बांटें ,
पर आह को हम समझें निज आह।
मुख न मोड़ें कभी निज दायित्वों से,
खुश होकर करें सदा इनका निर्वाह।