हम मानें न डर
हम मानें न डर
सागर रूपी जीवन में आती-जाती,
है अनवरत सुख-दुख की ही लहर।
ज्वार-भाटा सा सुख-दुख है होता,
बिल्कुल ही हम मानें न डर।
ठहरता न सुख -दुख है जीवन में
इस जगत में कभी भी किसी के।
कोई भी इतराए न ज्यादा सुख में,
सम-भाव में बिताए पल जिंदगी के।
खुशियों गमों का तो हम पर न होवे,
न कोई भी जीवन में बड़ा ही असर।
ज्वार-भाटा सा सुख-दुख है होता,
बिल्कुल ही हम मानें न डर।
सबके धीरज का परीक्षण होता है,
जब अपने जीवन में आती बाधाएं।
मिल जुलकर अपनों के संग में हम,
हंसी-खुशी इन्हें निज पथ से हटाएं।
जग में न ऐसी समस्या है जिसका,
नहीं कर सकते हैं आप समाधान कर।
ज्वार-भाटा सा सुख-दुख है होता,
बिल्कुल ही हम मानें न डर।
मिल जुल बंटाएं गम और मिल करके
हम सब अपनी सारी ही खुशियां मनाएं।
कई गुना कर दें इन खुशियों को और,
बंटाकर सारे ही गमों को हम सब घटाएं।
विचलित हो न पाएं हम कभी लक्ष्य से,
आपदाएं भले ही ढहाएं लाखों ही कहर।
ज्वार-भाटा सा सुख-दुख है होता,
बिल्कुल ही हम मानें न डर।