विजय तिलक
विजय तिलक


हिन्द के कपाल पर, मां भारती के भाल पर,
कर दो आज स्वर्ण से विजय तिलक,
ऐसे तुम दहाड़ दो या ऐसे तुम हुंकार दो,
दुश्मन भी कांप जाएं दूर तक,
तुम चलो कि ये धरा गगन हो धूल से भरा,
हर डाल और पात साथ झूमने लगे लता,
उद्घोष कोई ऐसा दो कि निद्रा से जगा दे जो,
और मृत कोई व्यक्ति भी जोश में हो उठ खड़ा,
तुम ही वीर वीरता हो तुम ही शक्ति भगवती,
तुम ही रुद्र शिव बनो और तुम बनो पद्मावती,
ना डर के आगे तुम झुको कि डर झुके तुम हो जहां,
तुम चलो जिस राह भी ये संग चले सारा जहां,
सब बंधनों को तोड़ आज तुम दिलों को जोड़ दो,
जो देश अपना बांटती वो रस्म आज छोड़ दो,
ना जाति के लिए लड़ो तुम देश के प्रहरी बनो,
इरादों की शक्ति से लहरों के रुख़ को भी मोड़ दो,
ऐसी एक गर्जना से आज तुम आगाज़ दो,
देश के संगीत को एक नया सा साज़ दो,
तुम चलो आगे बढ़ो सीखते चलो सबक,
मां भारती के भाल पर कर दो अब विजय तिलक।।