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Vikram Vishwakarma

Classics

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Vikram Vishwakarma

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वीरवार्ता

वीरवार्ता

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कुछ धीर धरे गंभीर हुए नेत्रों में अश्रु नीर लिए

चरणों को कुछ वंदन करके हो गया कर्ण कर जोङ खड़े


आदर न हृदय समाता था जल अश्रु बन बह जाता था

न जाने थी वह कौन बात जिस पर वह शीष नवाता था


कितना संयम कितना अतुल्य बल कैसी सहज समाधी है

शरशैय्या पे गंगा नंदन की शोभा कही न जाती है


कुछ ध्यान धर्म का धर कर के कुछ नीति ज्ञान समझा करके

राधेय को निकट बुला करके बोले वे नयन सजल करके


हे पौत्र सुनो तुम बड़े बीर हो न्याय धर्म के तुम ज्ञानी

सेनापति तो नहीं सही पर सुनो पितामह की वाणी


हो नहीं सूद के वंशज तुम हो पांडव के सहोदर भाई

कुल जाति वंश से सर्वश्रेष्ठ गुरु परशुराम के अनुयायी


यह अंतिम रण अब तुमसे है दुर्योधन को बल तुमसे है

यदि समर छोड़ तुम लो अवकाश तो थम जाये यह महानाश


सतकर्मो का कुछ ध्यान धरो मन में यह बात विचार करो

जो सुख वैभव है शान्ति में वह कहाँ भला रण गर्जन में


अब जा कर युध्द विराम करो सारे भारत का ताज बनों

हो न्यायशील सारे जग में तुम ही निष्कंटक राज करो


अब नहीं पितामह यह होगा सागर में नौका डोल चली

अब छूट गया है उसका तट न जाने वह किस ओर चली


यही आशिर्वचन पितामह दो मैं वज्रघात भी सह जाऊँ

यदि सम्मुख काल प्रकट होवे तो चकित उसे भी कर जाऊँ


राधेय ने पुनः प्रणाम किया उन शुभ चरणों का ध्यान किया

उर प्रेम भाव से भरे हुए बोले गांगेय तुम्हारी जय।


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