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Vikram Vishwakarma

Others

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Vikram Vishwakarma

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प्रिया

प्रिया

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प्रिया नाम ही नहीं तुम्हारा, तुम सचमुच हो प्यारी,

किसी लेखनी के सुंदर अक्षर से भी हो न्यारी।


शील और संस्कार सहजता उज्ज्वलता के रंग,

इन रंगो में रंगे हुए हैं सभी तुम्हारे अंग।


हृदय तुम्हारा मक्खन जैसा वीणा जैसी वाणी,

और सरलता इतनी मानो पीने वाला पानी।


कभी न देखा तुम्हें क्रोध में मैंने इतने दिन में,

भला तप्त अंगार कहां होता गागर के जल में।


अपनी अनुपमता से ही तुम हृदय उतर आती हो,

हो कितने भी दूर मगर तुम पास चली आती हो।


जिसने भी है तुम्हें रचा उसकी महिमा है भारी,

जय विरंची जय लोक पितामः जय हो सदा तुम्हारी।


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