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Vikram Vishwakarma

Inspirational

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Vikram Vishwakarma

Inspirational

पुरुषार्थ

पुरुषार्थ

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उठ जाग मानव मोह की तू चीर निद्रा त्याग कर,

आलस्य तज बन वीर तू कुछ कार्य कर पुरुषार्थ कर।

क्यूं सदा से सोया हुआ तू मोह की चादर लिए,

कर याद अपनेआप को आया ना तू इसके लिए।

मत बोझ बन तू विश्व पर इस विश्व का तू भार हर,

आलस्य तज बन वीर तू कुछ कार्य कर पुरुषार्थ कर।

कहते सदा सब संत हैं अनमोल मानव तन यही,

क्यूं व्यर्थ है तू गंवाता पाकर के दुर्लभ तन वही।

जीवन भले ही हो क्षणिक सत्कर्म कुछ साकार कर,

आलस्य तज बन वीर तू कुछ कार्य कर पुरुषार्थ कर।

अनुकूलता प्रतिकूलता जीवन में आएगी सदा,

आंधी तूफानों सहित सुखदुख साथ लाएगी सदा।

तु मुस्कुराकर यथोचित इन सभी का सत्कार कर,

आलस्य तज बन वीर तू कुछ कार्य कर पुरुषार्थ कर।

संसार सागर यह बड़ा गहरा बड़ा विकराल है,

सब को लुभाता यह मगर यह ही सभी का काल है।

तू ज्ञान की नौका में चढ़कर इस जलधि को पार कर,

आलस्य तज बन वीर तू कुछ कार्य कर पुरुषार्थ कर।               


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