STORYMIRROR

विडम्बना

विडम्बना

1 min
14.6K


मुझे गर्व है मैं बेटी हूँ,

मुझे गर्व है मैं पत्नी हूँ,

मुझे गर्व है मैं माँ भी हूँ !


बस मुझको आज गवारा नहीं

तो एक लड़की होना,

कुछ वहशियों के कारण

मेरा स्त्रीत्व खोना !!


मैं भी चाहती हूँ

कली बनकर खिलूँ

बाबुल के अँगना,


फूल बनकर फिर मैं महकाऊँ

ये आँगन तेरा सजना,

फिर जब ये रंगत ढल जाये

तब भी किसी के काम आऊँ,

एक खुशनुमा सी जिंदगी में

मैं भी तो सम्मान पाऊँ !

मगर...


टूटे सब अरमान मेरे,

बन के रह गयी एक खिलौना,

बस इसीलिए गवारा नहीं है

लड़की होना,

कुछ वहशियों के कारण

मेरा अस्तित्व खोना !!




Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama