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dr vandna Sharma

Drama

5.0  

dr vandna Sharma

Drama

वही चेहरा

वही चेहरा

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होती न तन्हा ज़िंदगी यूँ

तो गीत बनते ही क्यों,

होती न फूलों में इतनी खुशबू

तो भँवरे मंडराते ही क्यों।


होता न सुहाना मौसम

तो कोयल गुनगुनाती ही क्यों,

होती न तुम्हारी यादें

तो लबों पर हँसी आती ही क्यों।


होती ना बारिश की बूंदें

तो ये घटा घिरकर आती ही क्यों,

होती न चाँद में इतनी चमक

तो चाँदनी मन को लुभाती ही क्यों।


होती न जो तुमसे मुलाकात

तो तुम्हारी याद आती ही क्यों।


वर्षों आज फिर वही चेहरा दिखाई दे गया

वही मुस्कान, वही अंदाज़

कुछ यादों की सौगात दे गया।


मुस्करा पड़ी थी मैं

मुस्कान उसकी देखकर

खिल उठी थी मैं

खिलता उसे देखकर।


पर सोचती हूँ

कहीं फिर ये सिलसिला शुरू न हो

आगे बढ़ते पैरों में

यादों की ज़ंजीर न हो।



वक़्त के किसी मोड़ पर

छोड़ आयी जिन यादों को

वर्तमान क्यों गवाँऊँ

उन्हें याद कर।


सच है टूटा आईना

फिर जुड़ नहीं सकता

टूटकर फूल डाली से

फिर खिल नहीं सकता।


जोड़ो कितना ही टूटे हुए धागे को

गाँठ पड़ ही जाती है,

मत देख वो ख्वाब

जो सच हो नहीं सकता।


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