वह सार मेरे जीवन का
वह सार मेरे जीवन का
वह संदर्भ है,
मेरी संपूर्ण रचना का।
मैं प्रसंग हूं,
उसके पद्ध की।
वह भावार्थ है,
मेरे कविता का।
मैं व्याख्या हूं,
उसके गध की।
वह नायक,
मेरे कहानी का।
मैं नायिका,
उसके नाटक की।
उसका अहम किरदार है,
मेरे जीवन में।
मैं मुख्य पात्र हूं,
उसके जीवन की।
वह विलोम है,
मेरे दुख का।
मैं पर्यायवाची हूं,
उसके सुख की।
वह संधि विच्छेद है,
मेरे संकट का।
मैं समास हूं,
उसके पुर्वांचल की।
वह तत्सम है,
पुराने वाराणसी का।
मैं तद्भव हूं,
आज वाली बनारस की।
वह मुहावरा है,
'आंख का तारा'।
मैं लोकोक्ती हूं,
'जिसे पिया चाहे वही सुहागिन'।
वह प्रेम है,
इस हिया का।
मैं श्रृंगार रस हूं,
उसके हृदय की।
वह वीर रस है,
मुझपर उत्पीड़न की घड़ी में।
मैं करुड रस हूं,
उससे विरह की स्थिति में।
वह शब्दार्थ है,
परवाह का।
मैं परिभाषा
बेपरवाह की।
वह सार है,
मेरी सफलता का।
मैं सारांश हूं,
हमारे मध्य सामंजस्य की।
वह सुख,संपत्ति,यश
आदि है, मेरे जीवन का।
मैं प्रेम,माधुरी,शोभा
इत्यादि हूं, उसके जीवन की।