अरसे बाद की मुलाकात
अरसे बाद की मुलाकात
चांदनी रात थी
अरसे बाद की मुलाकात थी।
लोचन समझ मेरे
गेहुआ रंग बदन था।
जो लोचन उठाऊ तो
नीला गगन था।
हथेलियों को मेरे मिल रहा
एक मखमली स्पर्श था।
कहां से रास्ता पाऊं
दोनों के दरमियां
कहां से गुजर जाऊं,
मैं सुन सकता था
हवा कर रहा विचार-विमर्श था।
रफ्तार में गुजरती हवा
साईं साईं की ध्वनि से था,
माहौल पूरा गूंज रहा
पत्तों से थी पत्तियां टकराती
फिर ज्यों ही हवा का झोंका आते
वह पत्तों की छुअन से दूर हो जाती।
मचल जाती वह पुनः
पत्तों की छुअन पाने को,
पल भर की छुअन फिर
दूरी का आना-जाना
लगा रहा यह पूरी रात
ऐसी वो जालिम हवा थी।
पर इस जालिम हवा का
हम पर कहां पड़ाना था कोई असर
अरसे बाद मिले थे हम तो
हमारी थी मजबूत पकड़
अपने हलक से छूते
एक दूजे की हलक को
थी हमारी कश के जकड़
अभी अभी तो आगाज़ हुआ था,
अभी अभी वह इठलाने लगी।
छुड़ाकर मेरी हलक से
अपने हलक को
मुझसे दूर हो जाने लगी।
लेकर सहारा दीवार का
भरने लगी आहें वह,
कुछ घबराई कुछ शरमाई
कुछ इठलाई सी खड़ी थी वह,
चाहती थी फिर करीब आना
पर हया खाला से
ना ले पाई इजाजत वह।
चटक रंग व झीना वस्त्र
उसमें झलकता उनका चिकना तन
उनका खिलता शबाब
मेरा निगलता है खुद पर नियंत्रण।
महसूसा था मैंने करीबी बरतने को
उनका भी था व्याकुल मन।
मैंने बढ़ाया कदम
थामा उनका आंचल।
गिरा कर जिम्र से
समेटता रहा मैं आंचल
समेट लिया था मैंने मुट्ठी में उसे
बस तनिक रह गया था
बदन पर उनके।
मैंने ज्यों ही बढ़ाया कदम
सरकाने को आंचल
आ गिरी बारिश की एक मोटी बूंद,
टप से मेरे चश्मे की शीशे पर
खुली जो अब्सार शकपका गया मैं
यह तो स्वप्न मात्र था।
जो हो गया वह रूमानी पल,
मेरे अब्सार से ओझल।।