वह प्रकृति
वह प्रकृति
अहा...प्रकृति की अद्भुत ये छटा निराली...
सुंदर धानी चूनर फैली कैसी हरियाली..
रंग-बिरंगे पुष्प झूमती हर कली डाली
उड़ रही सतरंगी तितलियांँ नीली, पीली और काली
सरकती ओस पर्णों से जब संवाद करती हैं..
लड़ी से लड़ी इक दूजे पर बन बिखरती हैं
मानो धरा की सोंधी खुशबू से साक्षात्कार करती हैं
कलियों का रुनझुन.. भँवरों का गुनगुन...
फैल रही गुले गुलिस्तां में बहारों की मीठी धुन
देख फ़िज़ा यह प्रकृति भी मदमस्त हर्षा रही
मिल रही गले बन प्रिया सखी आली
सावन की चलती जब वह अल्हड़़ पुरवाई
झूम उठता मयूर...गा उठती कोयल वह काली...
प्रकृति एक वरदान है..!!!
सूरज को इस पर अभिमान है
नग, गिरि, शैल को इस पर स्वाभिमान है
कर रही थिरक कर स्वागत वो गोधूलि साँझ
गुनगुना रही मंत्रों स्वर जो अमृत विराजमान है