'वह' बात नहीं थी
'वह' बात नहीं थी
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आज मुझे महसूस हुुुआ
की बात भी कही खो जाती है....
आज तुम थे.....
मैं भी थी.....
सब कुछ था लेकिन 'वह' बात नहीं थी...
मुद्दत के बाद तुम्हारा मेरे घर आना
और वह हँस हँस कर बात करना
हँसी थी.....
मुस्कुराहट भी थी.....
सबकुछ था लेकिन 'वह' बात नहीं थी....
मैं इधर उधर की बातें कर रही थी
तुम भी यहाँ वहाँ की बातें कर रहे थे
कहानियाँ थी......
किस्से भी थे......
सबकुछ था लेकिन 'वह' बात नहीं थी....
तुम मेरी आँखों मे बार बार झाँक रहे थे
और मैं तुम्हे कनखियों से निहार रही थी
निगाहें थी......
नज़रें भी थी.......
सबकुछ था लेकिन 'वह' बात नहीं थी....
तुम पुरानी बातों को भूलने को कह रहे थे
मेरे जेहन में सारी पुरानी बातें आ रही थी
यादें थी.....
वादें भी थे......
सब कुछ था लेकिन 'वह' बात नहीं थी...
तुमने कहा, तुम्हारी हाथ की चाय पीये हुए अर्सा हुआ है
मैंने तुम्हारी पसंद वाली अदरक की चाय बनायीं
कप खूबसूरत थे...
चाय में मिठास भी थी.....
सबकुछ था लेकिन 'वह' बात नही थी...
तुमने बालकनी के उसी कोने में बैठने का इसरार किया
मैं भी तुम्हारे साथ उसी कोने वाली जगह बैठ गयी
जगह थी....
समय भी था...
सबकुछ था लेकिन 'वह' बात नही थी...
वहाँ हँसी,किस्से,निगाहें,यादें,समय और मैं सबकुछ था
लेकिन जिस 'तुम' को मैं तलाश कर रही थी वह कही नही था......
सबकुछ में 'वह' बात नही थी...
बात कही खो गयी थी......... इसलिए 'वह' बात भी नही थी....